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लकवे का इलाज और कारण

लकवे का इलाज और कारण

लकवे का इलाज और कारण : – लकवा एक खतरनाक बीमारी है और इस प्रकार के बॉडी का आधा हिस्सा काम करना बंद कर देता है. इस बीमारी में शरीर के अंगो में टेढ़ापन आ जाता है. ये बीमारी व्यक्ति की पूरी तरह से असहाय और दूसरों पर पूरी तरह से निर्भर हो जाते है. और हर छोटा से छोटा काम भी करने के लिए वो दुसरो पर निर्भर हो जाते है

लकवे का इलाज और कारण : – लकवा एक खतरनाक बीमारी है और इस प्रकार के बॉडी का आधा हिस्सा काम करना बंद कर देता है. इस बीमारी में शरीर के अंगो में टेढ़ापन आ जाता है. ये बीमारी व्यक्ति की पूरी तरह से असहाय और दूसरों पर पूरी तरह से निर्भर हो जाते है. और हर छोटा से छोटा काम भी करने के लिए वो दुसरो पर निर्भर हो जाते है. लकवा एक लाइलाज बीमारी मानी जाती है लेकिन आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है और इसका इलाज भी बहुत है.जब हमारी मांसपेशियाँ कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ हों जाती है उस स्थिति को पक्षाघात, लकवा या फालिज कहते हैं.

लकवे होने पर प्रभावी क्षेत्र के भाग को उठाना, घुमाना, फिराना या चलना-फिरना लगभग असम्भव हो जाता है. लकवा अति भागदौड़, क्षमता से बहुत ज्यादा परिश्रम या बहुत अधिक व्यायाम, अति गरिष्ठ भोजन बहुत अधिक मात्रा में लेने से हो सकता है. लकवे का इलाज और कारण जानना बहुत ही जरूरी है. क्योंकि लकवे का इलाज और कारण जानकार हम इसे आसान से ठीक कर सकते है.लकवा होने के कारण कई सारे है जिन्हे जानना बहुत जरूरी है और लकवे की बीमारी शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है और नाड़ियों की कमजोरी के कारण भी लकवा हो जाता है. अचानक से शदमा लगने के कारण भी लकवा शरीर में फ़ैल जाता है.


लकवे का इलाज और कारण

मांसपेशियों की दुर्बलता और मानसिक दुर्बलता के करना भी लकवा होने की सम्भावना रहती है. बढ़ता हुआ रक्तचाप और उलटी सामान्य से अधिक होना व साथ में दस्त का लगातार होना भी लकवे का मुख्य करना हो सकता है.जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे खून का दौरान रुक जाता है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास खून एकत्र हो जाता है ऐसी अवस्था में शरीर के किसी भी हिस्से में लकवा हो सकता है अथवा किसी हिस्सों में रक्तवाहिका में खून का थक्का बनने के कारण खून की पूर्ति बंद हो जाय तो उस अंग में लकवा हो जाता है.

लकवे की बीमारी के कई सारे लक्षण है जिन्हे आप पहले से पहचान सकते है की लकवा है या नहीं जैसे यदि शरीर की नसों का सुख जाना और उनमे तरल का न बहना और व्यक्ति का बोलना खत्म हो जाना भी इसका का लक्षण है. आँख नाक कान और मुँह आदि का टेढ़ा हो जाना बहुत ज़ोरो का सिरदर्द होना और बार बार चक्कर आना लकवा की बीमारी के लक्षण है. शरीर में बहुत तेज सी कम्पन होना भी लकवे का लक्षण है. यदि इन लक्षणों मेसे कोई भी एक लक्षण होता है तो वो लकवा हो सकता है और लकवे का ठीक समय पर उपचार करके इस बीमारी को शरीर में फैलने से रोक सकते है.

लकवे में एक बहुत ही सटीक उपचार माना जाता है. उसके अनुसार इस उपचार में पहले दिन लहसुन की पूरी कली पानी के साथ निगल जाएँ. फिर नित्य 1-1 कली बढ़ाते हुए 21वें दिन पूरी 21 कलियाँ निगलें. तत्पश्चात 1-1 कली घटाते हुए निगले. इस प्रयोग को करने से लकवे में शीघ्र ही आराम मिलता है. 10 ग्राम सूखी अदरक और १० ग्राम बच पीसलें इसे ६० ग्राम शहद मिलावें. यह मिश्रण रोगी को 6 ग्राम रोज देते रहें. 10 लहसुन की 4 कली पीसकर दो चम्मच शहद में मिलाकर रोगी को चटा दें. लकवा रोगी का ब्लड प्रेशर नियमित जांचते रहें. अगर रोगी के खून में कोलेस्ट्रोल का लेविल ज्यादा हो तो रोगी तमाम नशीली चीजों से परहेज करे. भोजन में तेल,घी,मांस,मछली का उपयोग न करे.


बरसात में निकलने वाला लाल रंग का कीडा वीरबहूटी लकवा रोग में बेहद फ़ायदेमंद है. बीरबहूटी एकत्र कर लें. छाया में सूखा लें . सरसों के तेल पकावें. इस तेल से लकवा रोगी की मालिश करें. कुछ ही हफ़्तों में रोगी ठीक हो जायेगा. इस तेल को तैयार करने मे निरगुन्डी की जड भी कूटकर डाल दी जावे तो दवा और शक्तिशाली बनेगी. एक बीरबहूटी केले रोजाना देने से भी लकवा में अत्यन्त लाभ होता है. सफ़ेद कनेर की छाल और काला धतूरा के पत्ते बराबर वजन में लेकर सरसों के तेल में पकावें. यह तेल लकवाग्रस्त अंगों पर मालिश करें. अवश्य लाभ होगा. लहसुन की 5 कली दूध में उबालकर लकवा रोगी को नित्य देते रहें. इससे ब्लडप्रेशर ठीक रहेगा और खून में थक्का भी नहीं जमेगा.

लकवा का रोग होने पर एक काले कपड़े में पीपल की सूखी जड़ को बांधकर उसे लकवा से पीडि़त व्यक्ति के सिर के नीचे रखें तो कुछ ही दिनों में इससे लाभ मिलना शुरू हो जाता है.प्रत्येक शनिवार के दिन एक नुकीली कील से लकवा के रोगी के प्रभावित अंग को आठ बार उसारकर मन ही मन में शनिदेव का स्मरण करते हुए उसे पीपल के वृक्ष की मिट्टी में गाड़ दें। साथ ही यह निवेदन करें कि हे शनि देव जिस दिन लकवा का रोग दूर हो जाएगा, हम उस दिन किलों को निकाल लेंगे. ऐसा लगातार 21 शनिवार तक करें और जब लकवा का रोग ठीक हो जाए तब शनिदेव व पीपल को आभार प्रकट करते हुए वह सभी कीलें निकालकर उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें.

लकवा मरीजों के बेहतर इलाज में दवाओं के साथ फिजियोथेरेपी की अहम भूमिका है। फिजियोथेरेपी से मरीज के बेजान अंगों में जान फूंकी जा सकती है। यह जानकारी विश्व फिजियोथेरेपी जागरूकता सप्ताह के तहत आयोजित सेमिनार में दिल्ली एम्स में फिजियोथेरेपी विभाग के प्रभात रंजन ने दी।

इंदिरानगर में रविवार को न्यूरो फिजियोथेरेपी शिविर लगा। इसमें फिजियोथेरेपिस्ट प्रभात रंजन ने कहा कि लकवा की चपेट में कोई भी आ सकता है। पहले अधिक उम्र के लोग इस बीमारी की चपेट में आते थे। अब बेढंगी जीवनशैली व खान-पान से लकवा की संभावना बढ़ गई है।

तेल मालिश से बचें लकवा के मरीज : लकवा में हाथ व पैर का हिस्सा बेजान हो सकता है। सही समय पर दवाओं से लकवा पर काबू पाया जा सकता है। फिजियोथेरेपिस्ट संतोष कुमार ने कहा कि लकवा के मरीजों को किसी भी प्रकार की तेल मालिश से बचना चाहिए। आकांक्षा उपाध्याय ने बताया कि रविवार को सुबह आठ बजे से नि?शुल्क न्यूरो फिजियोथेरेपी शिविर लगाया गया। इसमें 45 मरीजों ने पैरालिसिस सम्बन्धित कारण एवं निवारण के लिए पंजीकरण कराया।

लोहिया अस्पताल में संस्थान के दो विभागो की ओपीडी चलेगी-

लोहिया अस्पताल में संस्थान के दो विभागों की ओपीडी चलेगी लखनऊ।

लोहिया संस्थान में संचालित हड्ढी और मेडिसिन विभाग की ओपीडी विलय के बाद लोहिया अस्पताल में चलेगी। अस्पताल के न्यू ब्लॉक में मेडिसिन और हड्डी रोग विभाग शिफ्ट किया जाएगा। संस्थान में इन विभागों के पास अपने वार्ड नहीं थे। लिहाजा मरीजों की भर्ती भी नहीं हो पा रही थी। लोहिया संस्थान में अस्पताल का विलय हो रहा है। 20 सितम्बर तक विलय की प्रक्रिया शुरू होगी। संस्थान के निदेशक डॉ. एके त्रिपाठी ने बताया कि मेडिसिन और हड्डी रोग विभाग की ओपीडी अस्पताल परिसर में चार मंजिला भवन के भूतल में चलेगी। 12 डॉक्टरों के केबिन बना दिए गए हैं। प्लास्टर भी इसी भवन में होगा। 

लकवा किस विटामिन की कमी से होता है

आयुर्वेद के अनुसार पैरालिसिस यानि लकवा या पक्षाघात एक वायु रोग है, जिसके प्रभाव से संबंधित अंग की शारीरिक प्रतिक्रियाएं, बोलने और महसूस करने की क्षमता खत्म हो जाती हैं। आयुर्वेद में पैरालिसिस के 5 प्रकार बताए गए हैं और इसके लिए कोई विशेष कारण जिम्मेदार नहीं होता, बल्कि इसके कई कारण हो सकते हैं। जानिए इसके कारण, प्रकार और उपाय – 
 
 
कारण : युवावस्था में अत्यधिक भोग विलास, नशीले पदार्थों का सेवन, आलस्य आदि से स्नायविक तंत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है। सिर्फ आलसी जीवन जीने से ही नहीं, बल्कि इसके विपरीत अति भागदौड़, क्षमता से ज्यादा परिश्रम या व्यायाम, अति आहार आदि कारणों से भी लकवा होने की स्थिति बनती है।

1 अर्दित : सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होना अर्दित यानि फेशियल पेरेलिसिस कहलाता है। इसमें सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुंह स्थिर होकर मुख प्रभावित होता है और स्थिर हो जाता है। 
 
2 एकांगघात : इसे एकांगवात भी कहते हैं। इस रोग में मस्तिष्क के बाहरी भाग में समस्या होने से एक हाथ या एक पैर कड़क हो जाता है और उसमें लकवा हो जाता है। यह समस्या सुषुम्ना नाड़ी में भी हो सकती है। इस रोग को एकांगघात यानि मोनोप्लेजिया कहते हैं।

3 सर्वांगघात : इसे सर्वांगवात रोग भी कहते हैं। इस रोग में लकवे का असर शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है, इसलिए इसे सर्वांगघात यानि डायप्लेजिया कहते हैं। 
 
4  अधरांगघात : इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में विकृति आ जाने से होता है। यदि यह विकृति सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी लकवा हो सकता है। जब लकवा ‘अपर मोटर न्यूरॉन’ प्रकार का होता है, तब शरीर के दोनों भाग में लकवा होता है। 

5  बाल पक्षाघात : बच्चे को होने वाला पक्षाघात एक तीव्र संक्रामक रोग है। जब एक प्रकार का विशेष कीड़ा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर उसे नुकसान पहुंचाता है तब सूक्ष्म नाड़ी और मांसपेशियों को आघात पहुंचता है, जिसके कारण उनके अतंर्गत आने वाली शाखा क्रियाहीन हो जाती है। इस रोग का आक्रमण अचानक होता है और यह ज्यादातर 6-7 माह की आयु से ले कर 3-4 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को होता है।
 
 
घरेलू चिकित्सा
लकवा एक कठिन रोग है और इसकी चिकित्सा किसी रोग विशेषज्ञ चिकित्सक से ही कराई जानी चाहिए। इस रोग के प्रभाव को कम करने में सहायक घरेलू नुस्खे प्रस्तुत हैं। ले‍कि‍न यह सम्पूर्ण चिकित्सा करने वाला सिद्ध हो, यह जरूरी नहीं।
1. बला मूल (जड़) का काढ़ा सुबह-शाम पीने से आराम होता है।
2. उड़द, कौंच के छिलकारहित बीज, एरण्डमूल और अति बला, सब 100-100 ग्राम ले कर मोटा-मोटा कूटकर एक डिब्बे में भरकर रख लें। दो गिलास पानी में 6 चम्मच चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा गिलास बचे तब उतारकर छान लें और रोगी को पिला दें। यह काढ़ा सुबह व शाम को खाली पेट पिलाएं।
3. लहसुन की 4 कली सुबह और शाम को दूध के साथ निगलकर ऊपर से दूध पीना चाहिए। लहसुन की 8-10 कलियों को बारीक काटकर एक कप दूध में डालकर खीर की तरह उबालें और शकर डालकर उतार लें। यह खीर रोगी को भोजन के साथ रोज खाना चाहिए।
4. तुम्बे के बीजों को पानी में पीसकर लकवाग्रस्त अंग पर लेप करने से लाभ होता है।

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